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Sindhu vihar plot

Poem-30

 कहां पर हो चले आओ, नवंबर बीत जाए ना।

मन के अहसास पढ़ जाओ,प्रेम घट‌ रीत जाए ना।


तुम्हारे काम का झूठा बहाना, कब तलक आख़िर।

हमारे बीच आएगा ज़माना, कब तलक आख़िर।

नहीं  परवाह मेरी ही बस,  तुम्हें  सारे ज़माने में।

रहेगा मुझसे बढ़ कर के ज़माना,कब तलक आख़िर।

मुझे अब तुम ना भरमाओ, नवंबर बीत जाए ना।


जुड़ी  हैं  कितनी  ही यादें , हमारी इस नवंबर ‌से।

बड़ा डर लगता है मुझको, सुनो बर्फीले दिसंबर से।

पड़ेगी धुंध नज़रों को, नज़ारा कुछ ‌सभी नहीं होगा।

रहेगी धूप भी कुछ दिन जुदा,अब नीले अम्बर से।

तपिश सांसों की ले‌ आओ, नवंबर बीत जाए ना।


अगर तुम साथ हो कुछ भी, दिसंबर कर नहीं सकता।

ये तुम भी जानते हो प्यार, अब यह मर नहीं सकता।

सितम कर लो भले कितने, मुहब्बत  तुमसे है तो है।

तेरी तीर ए नज़र का ज़ख़्म है, ‌ये भर ‌नहीं सकता।

कभी मरहम भी बन जाओ,  नवंबर‌  बीत‌ जाए ना


पता है तुमको  तुमसे  आजकल, रूठा  हुआ  हूं  मैं।

देखो लो जर्द पत्तों की तरह ‌,शाख से टूटा हुआ हूं मैं।

 मनाने  का  कोई ‌अंदाज क्या, तुमने  ना  सीखा है

गुलाबी  सर्दियों  में भी, नंगें  सिर  बैठा  हुआ  हूं  मैं।

तुम बस एक शाॅल ले आओ, नवंबर बीत जाए ना।


कहां पर हो चले आओ, नवंबर बीत जाए ना।

मेरे अहसास पढ़ जाओ, नवंबर बीत जाए ना।


        

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