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Sindhu vihar plot

Poem-29

 तुम्हें जाना है तो चले जाओ.. 

 पर जाते-जाते द्वार कसके बंद कर जाओ! 

 ताकि कोई भूलाबिसरा प्रेम का लम्हा तुम्हारा रूख ना बदल दे, 

 मुड़े हुए कदमों को कुछ पल के लिए ही सही, ना पलट दे! 

 मैंने कब पुकारा था तुम्हें, 

 तुम ही तो आए थे मेरे जीवन में! 

हवा की तरह घुल गए थे फिर मेरे संम्पूर्ण तन मन में ! 

कहीं कोई घुटन ना थी उस बंधन में! 

 कैसा अपूर्व सुख था उस जकड़न में! 

 पर अब तुम्हें मुक्त होना है तो हो जाओ ... 

जिद है अगर तुम्हारी  मेरी श्वासों को भी साथ ले जाने की तो वो भी ले जाओ ! 

 तुम्हें शायद लगता है कि  

 बेरंग जिंदगी है मेरी अब बेमानी सी, 

कश्मकश है हर धड़कन में

अजीब सी अनजानी सी! 

 तुम सोचते हो तुम्हारे जाने से यह रुक जाएगी.. 

 भूल है तुम्हारी , यह रुकी हुई जिंदगी ही तो तुम्हारी कहानी सुनाएगी! 

 बिस्तरों की सलवटों पर अभी भी तुम्हारा स्पर्श पसरा पड़ा है, 

 खूंटी पर टंगे कुर्तों से आती महक में

 तुम्हारा वज़ूद अभी भी वैसे ही संवरा पड़ा है! 

 गुलाब की झुकी हुई डाली अब भी तुम्हारे स्पर्श का एहसास कर लज्जा से झुक जाती है ! 

 देखता तो हूं आईना मैं, 

पर आकृति तो तुम्हारी ही नजर आता है! 

 तुम्हारे मेरे बीच बुनी खट्टी मीठी वे अगणित कहानियां

 यूं ही जिंदगी के पन्ने भरे जा रही हैं , 

बहुत मसरूफ हूँ मैं, देखो एक खूबसूरत सी किताब जो बनने जा रहा हूँ ! 

तुम तो ठहरे पगली , निकल पड़े  खुशियों की खोज में , 

तो नया रास्ता भी अपना लिया है   

पर मुझे कोई गिला शिकवा नहीं

ना तुमसे ना जिंदगी से, 

 मैंने अपनी सोचो में ही सही  अपने हिस्से  का हर  सुख  जो पा लिया है!!

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