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Sindhu vihar plot

Poem 26

 *मरम्मतें खुद की ....रोज़ करता  हूँ,*

*फिर भी ना जाने क्यों..*

*रोज़ मेरे अंदर .....एक नुक्स निकल आता  है......।।।।*


 *मन की लिखूँ तो शब्द रूठ जाते हैं...*


*और सच लिखूँ तो अपने रूठ जाते हैं...*


*मानो तो एक "रूह का रिश्ता"* 

*है हम सभी का.....!!*


*ना मानों तो "कौन*

 *"क्या " लगता" है किसी का.*


      

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