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Sindhu vihar plot

Poem-23

 #पुरुष


एक शादी_शुदा पुरूष, जब किसी स्त्री से मिलता है.


उसे जाने अनजाने मे अपना दोस्त बनाता है


तो वो जानता है की 

न तो वो उसकी हो सकती है और ना ही वो उसका हो सकता है


वो उसे पा भी नही सकता और खोना भी नही चाहता

  

फिर भी वह इस रिश्ते को वो अपने मन की चुनी डोर से बांध लेता है


तो क्या वो इस समाज के नियमो को नही मानता?

क्या वो अपने सीमा की दहलीज को नही जानता?


जी नहीं....!! 


वो समाज के नियमो को भी मानता है

और अपने सीमा की दहलीज को भी जानता है

सब जानता सब मानता है 

मगर कुछ पल के लिए वो अपनी जिम्मेदारी भूल जाना चाहता है


कुछ खट्टा,कुछ मीठा

आपस मे बांटना चाहता है

जो शायद कही और किसी के पास नही बांटा जा सकता 


वो उस शख्स से कुछ एहसास बांटना चाहता है जो उसके मन के भीतर ही रह गए है कई सालों से


थोडा हँसना चाहता है,खिलखिलाना चाहता हैं

वो चाहता है की कोई उसे भी समझे बिन कहे


सारा दिन सबकी फिक्र करने वाला पुरुष चाहता है कि कोई उसकी भी फिक्र करे,उसे भी  कोई जी भर के प्यार करे 


वो बस अपने मन की बात कहना चाहता है

जो रिश्तो और जिम्मेदारी की डोर से आजाद हो


कुछ पल बिताना चाहता है

जिसमे ना राशन का जिक्र हो,ना EMI की कोई तारीख हो,ना स्कूल की फीस न बच्चों का टेंशन और ना इसकी कोई तैयारी हो


बस कुछ ऐसे ही मन की दो बातें करना चाहता है


कभी उल्टी_सीधी,बिना सर_पैर की बाते

तो कभी छोटी सी हंसी और कुछ पल की खुशी


बस इतना ही तो चाहता है

आज शायद हर कोई इस रिश्ते से मुक्त एक दोस्त ढूंढता है


जो जिम्मेदारी से मुक्त हो.

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