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Sindhu vihar plot

Poem-21

 जिनको क़द्र नहीं शब्दों की 

उनको मेरा मौन मिलेगा !


शिखर चूमने वाले अक्षर

चरण वंदना नहीं कर सके,

स्वाभिमान है शब्दों में सो,

गुमनामी में नहीं मर सके 

रसग्राही मन शब्द-शब्द पर,हँस सकता है रो सकता है

मेरे भीतर रह कर भी चुपचाप किसी का हो सकता है

इसीलिए दुनिया कहती है शाश्वत हैं ये, शब्द ब्रह्म हैं

भावों पर वरदान-सरीखे इन्हें सतत उर-भौन मिलेगा। (भौन:भवन)


कुछ ने झूठ कहा इनको तो

कुछ ने निरा खोखला बोला

कुछ शब्दों के मिले ज़ौहरी

जिनने भरा हृदय भर झोला

जिसकी रही भावना जैसी, वैसा वह शब्दों से खेला

कुछ ने नीर बहाए दृग से, कुछ ने इनपर किया झमेला

जबकि शब्द तो बहुत सरल है, पावन है, यह गंगाजल है

इनकी पावनता कहती यह- इनसे सच्चा कौन मिलेगा।


कितना दर्द सहा नदिया ने

जब सागर को थाह नहीं है 

पत्थर पर हीरा मारूँ फिर ? 

धत !ऐसी भी चाह नहीं है 

वैसे तो मिल ही जाते हैं शब्द-शब्द पर घोर प्रशंसक

किन्तु एषणा यह है मेरी पहुँच सकूँ मैं दिल से दिल तक

भीड़ भरी भारी दुनिया में कठिन नहीं है इन्हें समझना 

इन्हें वृथा कहने वालों को इनका आशय गौण म

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