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Sindhu vihar plot

Poem-18

 अंदाज़ मौसम का आज,

फिर खुशनुमा सा है।

बुझी चिंगारी सुलग रही,

उठ रहा फिर धुऑं सा है।।


जले मकान में फिर से आग, 

लगे भी क्या भला।

हाँ, बरस कर ही मिटा दे,

जो कुछ बचा निशां सा है।।


गुज़रते वक़्त के साथ उम्र का,

ढलना है लाज़मी।

न जाने दर्द मेरा अब तलक,

क्यूं जवां जवां सा है।।


मासूमियत पर जिसके कभी,

हम बेहद फिदा हुए।

उसी शख़्स ने उजाड़ डाला,

आज मेरा जहाँ सा है।।


बहते अश्क़ों को छुपाते रहना,

आसां तो नही है 'पगली'।

गुज़रे वक़्त की यादें ज़ेहन में,

जब तलक रवां सा है।।


एक लम्हे की बात होती तो,

शायद भूलना था मुमकिन।

यहाँ तो मुसल्सल यादों का, 

कोई कारवाँ सा है।।


अब होश में रहकर सुकून का,

मिलना नही है मुमकिन।

माना सच्चाईयां जान कर भी इंतज़ार करना ज़हर है, 

पर मेरे खातिर दवा सा है।।


कोई लतीफा नही मेरा गम,

जो अल्फ़ाज़ों में बयान कर दूँ।

बा हैसियत हाल ए दिल मेरा,

एक दास्तां सा है।।


मैं टटोलता हूँ माज़ी अपने,

न जाने क्यों बार बार। मेरा काशाना कभी जन्नत था,

वो अब जर्जर मकां सा है।।


जब इश्क़ था लाजवाब वो,

तो फ़क्र होना था लाज़मी।

दर्द भी ये बेमिसाल है तो,

हो रहा गुमां सा है।।


लब सिल तो लिया हूँ लेकिन,

नज़रे बहना न छोड़ती।

मेरे दर्द को अश्क़ मेरे,

करता बयां सा है।।

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