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Sindhu vihar plot

Poem-17

 मन करता है मेरा...


कभी मैं आ जाऊं अचानक यूँ ही

तुम्हारे सामने और अपलक

निहारता रहूं तुम्हें,

जब तक तुम

मुझसे ये न पूछो कि  तुम.. तुम ठीक तो हो न.. 

और मैं अपने आँखो को बंद करके समेट लूं 

उन लम्हों को !


मन करता है कि

कभी यूँ ही आ जाऊं और तुम्हारे पास 

बैठ जाऊं उस नदी के किनारे 

जहां पर हम कभी  बैठे थे ,

और तुमसे पूछ बैठूं कि 

क्या तुमने भी मुझे सोचा है 

या कभी सोचकर मुस्कुराए हो !


मन करता है कि

कभी यूँ ही मैं तुम्हारे सामने 

से बिना कुछ कहे ही गुजर जाऊं और 

उस खुशबू को समेट लूं 

जो मुझे महका कर चला जाएगा !


मन करता है मेरा..

कभी मैं यूँ ही मैं तुम्हारे हाथों

में अपना हाथ देकर पूछूं कि 

क्यूँ तुम मुझसे दूर क्यों जाते हो?


मन करता है मेरा..

कभी मैं यूँ ही तुम्हारे साथ चलने लगूं 

और ये सफर कभी ख़त्म ही 

न हो बस चलता रहे, 

कभी बारिश, कभी धूप,कभी सर्द हवा

आ जाए 

पर मैं बेखबर चलता जाऊं !


मन करता है 

कि तुम सिर्फ बोलों और 

मैं सुनता जाऊं,

मुझे पता है कि मैं शब्दों को नहीं 

सुन पाऊंगा, 

मैं खो जाऊंगा उस आवाज़ में !


मन करता है कि

मैं अपने मन को बांधने को,

एक बांध बना लू 

जैसे कि किसी नदी के वेग 

को रोकने के लिये बनाए जाते हैं !!

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