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Sindhu vihar plot

Poem-12

 आज रास्ते में एक चेहरा पड़ा मिला मुझे,

लगता है फिर किसी ने किरदार बदला है अपना।

बिखरे हए थे कुछ ख्वाब इर्दगिर्द,

ना जाने किसने तोड़ा आज फिर किसका सपना।

चंद लहु के छींटे थे उस चेहरे पर,

शायद मारा है किसी ने फिर कोई अपना।

एक आह सी थी उस चेहरे की सिलवटों में,

पता नहीं किसे चाहता था, अपने माथे पर रखना।

मज़बूरी में कुछ बूंदें फिसल रही थी उससे,

ना जाने कितनी बार बहाया होगा पसीना अपना।

आंखों की नमी कर रही थी सैंकड़ों बातें,

रोते हुए भी हसाया होगा उसने किसी को  कितना।

गालों पर छोटी छोटी रेखाओं नुमा झुर्रियां थीं,

जाने किस पर लुटाया होगा उसने यौवन अपना।

आज पैरों में पड़ा है बेहाल सा कैसे,

किसने फैंका यूँ, कौन नहीं चाहता अब इसे रखना।

उठाओ इसे, हाथों में भर लो कोई इसको,

एक उम्र को जिया है इसने किसी गैर को मान कर अपना।


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