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Poem-11

 तेरे बिन....


क्यों तेरे बिन अब एक लम्हा भी नहीं गुजरता ?

क्यों तेरे बिन अब शाम नहीं होता ?

क्यों तेरे बिन ये रात नहीं गुजरता ?

 क्यों तेरे बिना सुबह नहीं होता?


          क्यों ये इंतजार की घड़ियां खत्म नहीं होता ?

          क्यों मैं तेरे बिन हंस नहीं पाता ?

          क्यों मुझे रात भर नींद नहीं आता ?

          क्यों अब मुझ में मैं नहीं रहा ?

          क्यों हर दास्तां हैं अब अनकहा ?


क्यों अब एक तेरे सिवा कुछ अच्छा नहीं लगता ?

 क्यों मुझसे ये लम्हा किसी वक्त नहीं कटता ?

 क्यों मैं दुनिया से कटा -कटा रहता हूं ?

क्यों मैं हमेशा खोया -खोया रहता हूं?


          क्यों कुछ खाली सा रहता है मुझ में हमेशा ?

          क्यों तेरे दीदार के लिए नजरें बिछाए रहता हूं ?

          क्यों तेरी एक नजर मुझ में जान डाल देती है ?

          क्यों तेरी कमी मुझे फिर से मार देती है ?


क्यों तेरी याद कभी टूटती नहीं ?

 क्यों यह मोह की डोर मुझसे छूटती नहीं ?

क्यों मैं सोचता हूं तुम ना रहे तो मैं भी ना रहूंगा ?

क्यों हर पल मेरी रूह तुझसे मिलने  को तड़पती है?


              क्यों मैं रोज- रोज तुम्हारा ही होता जा रहा हूं?

              क्यों मैं जिंदगी से परे होता जा रहा हूं?

              क्यों तुम  बिन तन्हाइयां घेर  लेती है मुझे?

             क्यों मैं तन्हा गुमसुम बैठा रहता हूं?


हे पगली सुनो!


मेरे हर क्यों को उत्तरों से भर दो ना 

तुम मुझमें समा के मुझे पूरा कर दो ना

ये खालीपन मेरी जान ले लेगा कभी

तुम फिर से मुझे मुझ में भर दो ना

बस एक बार मुझे आगोश में भर लो 

 इस तड़पती रूह को थोड़ा सुकून से भर दो ना।।

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