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Sindhu vihar plot

Peom-9

 सच कहूं तो चौदह फरवरी का दिन, 

 मेरे लिए साल में सिर्फ एक बार नहीं आता है! 

 मुझे लगता है कि मेरा मन हर दिन , 

या यूं कहूं हर पल चौदह फरवरी ही मनाता है! 

 जब भी देखता हूं वे सपने अधूरे पड़े हुए.. 

 जब तक जिए अधूरे थे पर

 जब चले गए तब पूरे हुए! 

बचपन से शुरू हुआ वह प्रेम किशोरावस्था तक आते- आते

दावानल सा पसर गया! 

 तभी तो युगों  की नदियां बहती रही.. 

 पर उस प्रेम का ताप वैसे ही धधकता रहा! 

 पगली-मनहर मन- मानस में

ऐसा रचा 

कि युगों युगांतर तक 

 प्रेम का प्रतीक ही बन गया! 

 प्रणय की तपिश कुछ ऐसी थी  कि समय भी उन पलों में बस  ठहर गया! 

 सच कहूं मुझे तो वही एक

 प्रेम की प्रतिमूर्ति दिखती है! 

 आरम्भ वहीं, तो प्रेम की परिणीति भी वहीं जाकर सिमटती है! 

 तुम्ही कहो ..क्या इसमें

तुम्हें कुछ अतिशयोक्ति लगती है? 

प्रेम के हमारे पलों को कोई 

कैसे एक दिन में बांध सकता है? 

वेग से उमड़ते सैलाब को कोई भला एक दिन में कैसे साध सकता है.. ? 

कभी देखा है... 

 सागर में मचल कर गिरती नदियों को.. 

 भंवरे के गुंजन पर लाज लजाती कलियों को.. 

 मदमस्त हवा पर नर्तन करते 

शाखों - पातों की अंगड़ाईयों को

प्रेम असीम है , शाश्वत है 

उसे निरंतर बहने दो ...

बांधो ना उसे एक दिवस में

 उसे अनंत ही रहने दो... !!

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