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Sindhu vihar plot

Peom-5

 अब सिर्फ तेरी तस्वीर ही,

 एक सहारा बना,

जो मैनें चुराया था कभी,

याद आता है बार बार तेरा,

तो तेरी तस्वीर देख लिया करता हूँ।

पर न तुमसे बातें कर सकता हूँ,

न तुमसे मुलाकाते कर सकता हूँ,

बस मेरी नज़्मों में ठहर गए हो कहीं।


बोलो न क्यों छीना मुझसे ये हक,

तुमसे बाते करने का।

तुम्हें पता है,कितना तड़पता हूँ मैं,

सिर्फ तुमसे बाते करने को।

जी चाहता है, बस

वो नंबर दसो डायल कर लूं।

कुछ न सोचू,

बस तुमसे बाते कर लूं।

पर रुक जाता हूँ,

पर तरसता हूँ,

और तेरी तस्वीर लेकर।

बस बेबस हो कसकता हूँ,

न तुम्हें बता सकूँ,

न तुम्हें जता सकूँ,

सबकुछ तुम जानते हो,

पर फिर भी न तुम्हें मना सकूँ।

जाने कब तक,

मेरी ज़िंदगी में तुम रहोगे,

चले भी जाओगे न ,

तो भी रहोगे।

ये नज़्म तुम्हारे नाम का,

कितने ही बार लिख चुका,

उसे कैसे मिटाऊँगा,

तुम तो मेरी किताबों में हो,

मेरी  उखड़ती साँसों के बाद भी रहोगे।


कहते है न एक रचनाकार की मुहब्बत,

अमर कर जाती है,अपने प्रीत को।

अल्फ़ाज़ों में रच देता है,

रंग देता है उन नीली काली स्याही से,

अपनी मुहब्बत को।

फिर न कभी भुलाने के लिए।

तुम भी रंग चुके, मेरी इन किताबों में,

तुम भी पढ़े जाओगे,मेरी रचनाओं में

हाँ तुम भी.............................

हां तुम भी.............…..

..........मेरी ......

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